रानी कर्णावती चित्तौड़गढ़ की एक महान रानी और शासक थी। भारत की ऐसी बहादुर वीरांगनाओं को शत् शत् नमन्।
कर्णावती एक ऐसी रानी थी जिनकी चर्चा आज भी इतिहास के पन्नों में की जाती है। वह चित्तौड़गढ़ की एक महान रानी और शासक थी। रानी कर्णावती की राणा संग्राम सिंह से शादी हुई थी। जिन्हें मेवाड़ की राजधानी चित्तौड़गढ़ के सिसोदिया वंश के राणा सांगा के नाम से जाना जाता था।
रानी कर्णावती अपने बलिदान के लिए जानी जाने वाली उन बहादुर रानियों में से एक है, जिन्होंने अपनी जान तो दे दी लेकिन दुश्मन के सामने अपने घुटने नहीं टेके। कर्णावती चित्तौड़ के राजा राणा सांगा की पत्नी थी। 1526 में मुगल बादशाह बाबर ने दिल्ली पर अपना कब्जा कर लिया था। जिसके चलते मेवाड़ के राजा राणा सांगा ने बाबर के खिलाफ राजपूत शासकों का एक दल चलाया था। जिसके बाद खानुआ की लड़ाई में राणा सांगा की पराजय हो गई थी इस युद्ध में इन्हें काफी गहरे घाव लगे थे जिसकी वजह से इनकी कुछ दिनों में मृत्यु हो गई थी।
रानी कर्णावती के दो बेटे थे जिनका नाम राणा उदय सिंह और राणा विक्रमादित्य था। राजा राणा सांगा की मृत्यु के बाद रानी ने अपने बड़े विक्रमादित्य को राज गद्दी पर बैठाया लेकिन पूरा राज्यभार संभालने के लिए इस राजा की उम्र काफी छोटी थी। इसी बीच गुजरात के बहादुरशाह ने दूसरी बार मेवाड़ पर हमला कर दिया। इस युद्ध में राजा विक्रमादित्य की हार देखने को मिली। जिसके बाद रानी कर्णावती ने राज्य के सम्मान की रक्षा करने के लिए अन्य राजपूत राजाओं से अपील की।
हुमायूं राखी मिलने के बाद चित्तौड़ के लिए रवाना हुए लेकिन वह समय से पहुंचने पर नाकाम साबित हुए। जिसके चलते बहादुरशाह ने चितौड़ पर प्रवेश कर लिया। यह देखते हुए रानी कर्णावती को अपनी हार दिखने लगी जिसके बाद 8 मार्च 1535 के दिन अन्य महिलाओं के साथ रानी कर्णावती ने जौहर कर लिया। कहा जाता है यह मेवाड़ का दूसरा दिल दहलाने वाला जौहर माना जाता है। भारत की ऐसी बहादुर वीरांगनाओं को शत् शत् नमन्।