कई बरसों से देखते आए हैं कि भारत की नई पीढ़ी खासकर हिन्दू युवा ही जौहर जैसे शब्द का मजाक उड़ाते आएं है।
उन्हें #जौहर शब्द एक मजाक लगता है,
उनको लगता है कि जौहर डरने की निशानी है.
उनका तर्क ये भी रहता है कि आग में जलने से अच्छा तो लड़ना चाहिए था। दरसल हमारी नई पीढ़ी को आजादी
बपौती में मिली है व इतिहास का आधा ज्ञान है और उसी ज्ञान की बजह से इनके अंदर अपने इतिहास के प्रति नकारात्मकता रहती है...
आज कल जो अफगान के हालात हैं ,
उसको देखकर मुझे उस दौर की याद आयी.
आज जो हालात अफगानिस्तान में हैं, उससे 100 गुना ज्यादा बुरे हालात हमारे इतिहास में थे।
आज जो
अफगान में तालिबान के डर से वहां के पुरुष अपनी महिलाओं को छोड़कर भाग रहे हैं व दूसरा वो महिलाएं खुदको तालिबानी सैनिकों के सामने समर्पण कर रही हैं...तब समझ आता है कि हमारी संस्कृति में माताओं ने कितने साहस का काम किया था और क्यूं उन्होंने जौहर जैसा डरावना रास्ता चुना था ।
युद्ध मे हार के बाद
समर्पण करना सबसे आसान होता है।
लेकिन साका -- जौहर जैसी क्रिया करने के लिए विशालकाय हृदय चाहिए।
जो सिर्फ हमारे पूर्वजों में था ...
"नारी जद जौहर करे,नर देवण सिर होड़।
मरणो अठे मसखरी,यो मेवाड़ी चित्तौड़ ||
जौहर' एक ऐसा शब्द है जिसे सुनकर हमारी 'रुह कांप' जाती है।
परन्तु उसके साथ ही साथ यह शब्द क्षत्राणियोँ के अभूतपूर्व 'बलिदान' का स्मरण कराता है!
जो जौहर शब्द के अर्थ से अनभिज्ञ है - उन्हें मैं बताना चाहुँगी....
कि - जब किसी राजा के राज्य पर मुस्लिम आक्रमणकारीयों का आक्रमण होता तो युध्द में जीत की कोई संम्भावना ना देखकर
क्षत्रिय और क्षत्राणी आत्म समर्पण करने के बजाय लड़कर मरना अपना धर्म समझते थे!
क्योंकि कहा जाता है ना कि "वीर अपनी मृत्यु स्वयं चुनते है!" इसिलिए वीर और वीरांगनाए भी आत्मसमर्पण के बजाय साका (साका= केसरिया+जौहर) का मार्ग अपनाते थे! पुरुष (क्षत्रिय) 'केसरिया' वस्त्र धारणा कर प्राणों का उत्सर्ग करने हेतु 'रण भूमि' में उतर जाते थे और राजमहल की क्षत्राणियां अपनी 'सतीत्व की रक्षा' हेतु अपनी जीवन लीला समाप्त करने हेतु जौहर कर लेती थी!
क्षत्राणियां ऐसा इसलिए करती थी क्योँकि मुस्लिम आक्रमणकारी युध्द में विजय के पश्चात महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार करते थे! क्षत्राणियां खुद के शरीर को आग में इसलिए खाक कर लेती थी क्योंकि इस्लामिक जिहादी महिलाओं के मृत शरीर को भी छूना तो दूर की बात है उनको देख भी nhi सके ....
अत: क्षत्राणी विरांगनाएँ अपनी अस्मिता व गौरव की रक्षा हेतु जौहर का मार्ग अपनाती थी! जिसमे वे जौहर कुण्ड में अग्नि प्रज्जवलित कर धधकती अग्नि कुण्ड में खुद अपने प्राणों की आहुती दे देती थी!! जौहर के मार्ग को एक क्षत्राणी अपना गौरव व अपना अधिकार मानती थी! और यह मार्ग उनके लिए स्वाधिनता व आत्मसम्मान का प्रतिक था! ये जौहर कुण्ड ऐसी ही हजारों वीरांगनाओ के बलिदान का साक्ष्य है!
नमन है 🙏🏻 ऐसी साहसी विरांगनाओं को और गर्व है हमें हमारे गौरवपूर्ण इतिहास और संस्कृति पर......
जय राजपूताना🚩🚩